हवाई सफर पर साइबर अटैक का खतरा: जीपीएस हैकिंग से विमान कैसे हो सकते हैं असुरक्षित?

Cyber Threats in the Sky
हवाई यात्रा अब साइबर अपराधियों के निशाने पर है। हाल के वर्षों में उड़ते हुए विमानों पर जीपीएस (GPS) हैकिंग और जैमिंग के मामले तेजी से बढ़े हैं। हाल ही में लंदन से लिथुआनिया जा रहे एक विमान को जीपीएस सिग्नल बाधित होने के कारण पोलैंड की ओर मोड़ना पड़ा। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि जीपीएस हैकिंग क्या है, इससे क्या खतरे हो सकते हैं, और इससे बचाव के क्या उपाय हैं?
जीपीएस हैकिंग क्या है?
जीपीएस हैकिंग का मतलब किसी बाहरी स्रोत द्वारा जीपीएस सिग्नल में गड़बड़ी करना या उन्हें पूरी तरह से रोक देना है। यह दो तरह से किया जाता है:
- जीपीएस जैमिंग: इसमें हैकर्स हाई-पावर रेडियो सिग्नल भेजते हैं, जो असली जीपीएस सिग्नल को बाधित कर देते हैं। इससे विमान, कार या मोबाइल डिवाइस को सही लोकेशन डेटा नहीं मिल पाता।
- जीपीएस स्पूफिंग: इसमें नकली जीपीएस सिग्नल भेजकर विमान या किसी अन्य डिवाइस को गलत लोकेशन, समय या नेविगेशन डेटा दिखाया जाता है, जिससे सिस्टम भ्रमित हो जाता है।
हवाई यात्रा में जीपीएस हैकिंग कितना खतरनाक है?
जीपीएस हैकिंग से कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं:
- गलत दिशा में उड़ान: विमान को गलत लोकेशन डेटा मिलने पर उसे दूसरी दिशा में मोड़ना पड़ सकता है।
- टकराव का खतरा: पायलट को गलत लोकेशन और समय की जानकारी मिलने से दो विमानों के टकराने की संभावना बढ़ जाती है।
- लैंडिंग और टेकऑफ में दिक्कतें: खराब मौसम में दृश्यता कम होने पर जीपीएस जरूरी होता है, लेकिन जैमिंग से लैंडिंग और टेकऑफ मुश्किल हो सकता है।
- विमान का गलत एयरस्पेस में जाना: कई बार फ्लाइट को ऐसे एयरस्पेस में भेज दिया जाता है, जहां प्रवेश प्रतिबंधित होता है, जिससे सुरक्षा संबंधी जोखिम बढ़ जाते हैं।
- आतंकवादी हमले का खतरा: जीपीएस हैकिंग का इस्तेमाल विमान हाईजैक करने के लिए भी किया जा सकता है।
जीपीएस कैसे काम करता है?
जीपीएस उपग्रहों से जुड़ा होता है, जो लोकेशन, गति और समय की सटीक जानकारी भेजते हैं। जब कोई डिवाइस इन सिग्नलों के समय अंतर को मापता है, तो उसे अपनी लोकेशन का पता चलता है। अगर इस डेटा में छेड़छाड़ की जाती है, तो लोकेशन गलत हो सकती है।
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जीपीएस हैकिंग से कैसे बचा जा सकता है?
- एंटी-जैमिंग टेक्नोलॉजी: आधुनिक विमानों में जीपीएस सुरक्षा तकनीकों को जोड़ा जा रहा है, जिससे जैमिंग के प्रभाव को कम किया जा सके।
- सटीक ऑप्टिकल क्लॉक: ब्रिटिश वैज्ञानिक ऐसे ऑप्टिकल क्लॉक विकसित कर रहे हैं, जो मौजूदा परमाणु घड़ियों से 100 गुना अधिक सटीक हैं और जीपीएस पर निर्भर नहीं होंगी।
- क्वांटम नेविगेशन: ब्रिटेन सरकार ने “Quantum Enabled Position Navigation and Timing (QEPNT)” नामक एक प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसका लक्ष्य अगले 2-5 वर्षों में जीपीएस के बिना काम करने वाली नेविगेशन प्रणाली विकसित करना है।
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भविष्य में सुरक्षा कैसी होगी?
नई तकनीक पहले जहाजों और सैन्य उपकरणों में इस्तेमाल की जाएगी और फिर इसे विमानों में लागू किया जाएगा। वैज्ञानिक इस तकनीक को इतना छोटा और किफायती बनाना चाहते हैं कि इसे स्मार्टफोन में भी फिट किया जा सके। इससे हर व्यक्ति के पास अपना एक सुरक्षित नेविगेशन सिस्टम होगा, जिसे हैक करना संभव नहीं होगा।
जैसे-जैसे साइबर हमलों की संख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे हवाई सुरक्षा को मजबूत करने की जरूरत है ताकि यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।